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CRPC की धारा 144 क्या है | Section 144 कौन और कब करता है लागू?

इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि धारा 144 (Section 144) क्या है और यह किस कानून के अंतर्गत आती है। विधि के किस विषय में इसका उल्लेख है तथा किन परिसतिथियों में इस धारा का उपयोग किया जाता है। इस लेख मे धारा 144 का मतलब और न्यायलय की इसपर क्या राय रही है वह भी बताया गया है। धारा 144 से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें ।

क्या है CrPC की Dhara 144? | What is section 144 of CrPC

न्यूसेंस या आशंकित खतरे के अर्जेण्ट मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति —

1. उन मामलों में, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट अथवा राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किए गए किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय में इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार हैं तुरन्त निवारण या शीघ्र उपचार करना वांछनीय है, वह मजिस्ट्रेट ऐसे लिखित आदेश द्वारा जिसमें मामले के तात्विक तथ्यों का कथन होगा और जिसकी तामील धारा 134 द्वारा उपबंधित रीति से कराई जाएगी।

किसी व्यक्ति को कार्य विशेष न करने या अपने कब्जे की या अपने प्रबंधाधीन किसी विशिष्ट संपत्ति की कोई विशिष्ट व्यवस्था करने का निदेश उस दशा में दे सकता है जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट समझता है कि ऐसे निदेश से यह संभाव्य है, या ऐसे निदेश की यह प्रवृत्ति है कि विधिपूर्वक नियोजित किसी व्यक्ति को बाधा, क्षोभ या क्षति का, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का, या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का, या बलवे या दंगे का निवारण हो जाएगा।

2इस धारा के अधीन आदेश, आपात की दशाओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि उस व्यक्ति पर, जिसके विरुद्ध यह आदेश निदिष्ट है, सूचना की तामील सम्यक् समय में करने की गुंजाइश न हो, एकपक्षीय रूप में पारित किया जा सकता है।

3इस धारा के अधीन आदेश किसी विशिष्ट व्यक्ति को, या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में जाते रहते हैं या जाएँ, निदिष्ट किया जा सकता है।

4इस धारा के अधीन कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से दो मास से आगे प्रवृत्त न रहेगा:

परन्तु यदि राज्य सरकार मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का निवारण करने के लिए अथवा बलवे या किसी दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो वह अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन किया गया कोई आदेश उतनी अतिरिक्त अवधि के लिए, जितनी वह उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, प्रवृत्त रहेगा, किन्तु वह अतिरिक्त अवधि उस तारीख से छह मास से अधिक की न होगी जिसको मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश ऐसे निदेश के अभाव में समाप्त हो गया होता ।

5. कोई मजिस्ट्रेट या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर किसी ऐसे आदेश को विखंडित या परिवर्तित कर सकता है जो स्वयं उसने या उसके अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट ने या उसके पद-पूर्ववर्ती ने इस धारा के अधीन दिया है।

6राज्य सरकार उपधारा (4) के परन्तुक के अधीन अपने द्वारा दिए गए किसी आदेशं को या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर विखंडित या परिवर्तित कर सकती है।

7जहाँ उपधारा (5) या उपधारा (6) के अधीन आवेदन प्राप्त होता है वहाँ, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक को या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके समक्ष हाजिर होने और आदेश के विरुद्ध कारण दर्शित करने का शीघ्र अवसर देगी; और यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदन को पूर्णतः या अंशतः नामंजूर कर दे तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगी।

IMPORTANT HIGHLIGHTS OF SECTION 144 / धारा 144 के मुख्य बिन्दु

  • यह धारा भारत में किसी भी राज्य(state) या केंद्रशासित प्रदेश(union territory) के मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है की वह एक तय क्षेत्र में चार या उससे अधिक लोगों के एक साथ इखट्टे होने पर रोक लगाने के आदेश पारित कर सके ।
  • धारा 144 ज़िला मजिस्ट्रेट(district magistrate/DM), उप-विभागीय मजिस्ट्रेट(sub-divisional magistrate/SDM) या राज्य सरकार द्वारा किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट(executive magistrate) को हिंसा या उपद्रव की स्थिति में तत्काल प्रभाव से इस प्रावधान को लागू करने का अधिकार प्रदान करती है।
  • इस आदेश को किसी भी व्यक्ति विशेष या आम जनता के खिलाफ पारित किया जा सकता है।

क्यों होती है Dhara 144 की आलोचना धारा

144 की आलोचना काफी ज्यादा की जाती है क्योंकि इस धारा के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के पास पूर्ण रूप से यह अधिकार होता है कि वह इस धारा का ऑर्डर पास कर सके तथा उसको ऐसा करने पर किसी भी प्रकार का जस्टिफिकेशन नहीं देना पड़ता तथा इसके विरुद्ध यदि कोई रेमेडी है तो वह स्वयं मजिस्ट्रेट को ही दी जाने वाली रिवीजन एप्लीकेशन होती है । कोई भी व्यक्ति जो इसकी वजह से परेशान हुआ है या झेला है वह हाईकोर्ट में रिट पिटिशन डाल सकता है किंतु उसका भी कोई फायदा नहीं हो पाता है क्योंकि जब तक हाईकोर्ट की कार्यवाही शुरू होती है तब तक धारा 144 को हटा भी दिया जाता है यानी कि क्षेत्र में धारा 144 लगाई गई है वह हट जाती है।

धारा 144 और कर्फ्यू के बीच में क्या अंतर होता है

धारा 144 में सिर्फ संबंधित कार्य क्षेत्र में 4 या उससे अधिक लोगों को एक साथ इकट्ठा होने पर रोक लगाई जाती है । जबकि कर्फ्यू के अंतर्गत लोगों को एक विशेष अवधि के दौरान घर में बंद रहने पर या घर में अंदर रहने के लिए आदेशित किया जाता है । कर्फ्यू के तहत यातायात पर भी पूर्णता प्रतिबंध रहता है तथा बाजार स्कूल कॉलेज कार्यालय आदि भी बंद हो जाते हैं।  धारा 144 के अंतर्गत स्कूल कॉलेज बाजार आदि चलते रहते हैं यदि पूर्व सूचना पर अनुमति ले ली गई हो।

Section 144 पर न्यायालय की राय

न्यायालय के समक्ष सबसे बड़ा मुद्दा 1961 में बाबूलाल पराते बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में आया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीट बैठी जिसमें की धारा 144 को हटाने की मांग की गई थी । उसे खारिज कर दिया। पुनः यह मुद्दा डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा 1967 में न्यायालय के समक्ष लाया गया की धारा 144 से लोगों के स्वतंत्रता से घूमने के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है जिसमें की न्यायालय ने अपनी राय प्रकट करते हुए या का कि “किसी भी लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए उस देश के कुछ लोग या लोगों के समूह को आसानी से लोक व्यवस्था पर चोट करने नहीं दिया जा सकता” अतः ऐसे समय में धारा 144 जैसे कानूनों का होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

1970 में ऐसे ही एक और मामला सामने आया जिसमें की सात जजों की पीठ बैठी जिसमें चीफ जस्टिस हिदायतुल्लाह ने कहा की धारा 144 के अंतर्गत जो शक्ति मजिस्ट्रेट को दी गई है वह एक आम शक्ति नहीं है बल्कि यह एक ऐसी शक्ति है जिसका इस्तेमाल न्यायिक रूप से किया जाना चाहिए तथा आगे किसी समस्या के उत्पन्न होने पर इसका न्यायिक अवलोकन भी किया जा सकता है। किंतु इस कानून की संवैधानिकता के मुद्दे को खारिज कर दिया गया साथ ही यह भी बताया गया की धारा 144 किसी भी रूप में अनुच्छेद 19(2) जोकि बोलने की आजादी का अधिकार है उसका हनन नहीं करता है।

क्योंकि सभी मौलिक अधिकार एक युक्तियुक्त प्रतिबंध में है अतः कानून का दुरुपयोग हो रहा है यह कहकर किसी भी कानून को हटाया नहीं जा सकता।  हालांकि 2012 में न्यायालय ने सरकार की कड़ी निंदा की थी क्योंकि सरकार ने धारा 144 का उपयोग करते हुए रामलीला मैदान में सोते हुए भीड़ पर यह धारा लगा दी थी और उस पर एक्शन ले लिया था । न्यायालय ने अपनी राय रखते हुए यह कहा था कि इस धारा का प्रयोग सिर्फ उत्तेजित परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए जिनका उद्देश्य सामाजिक शांति की स्थापना करना हो। इस धारा का मुख्य उद्देश्य किसी कृत्य से होने वाले दुष्परिणामों को रोकना होता है।

निष्कर्ष:– आज लेख में हमने जाना की धारा 144 क्या है और किन हालातों में इस धारा का प्रयोग किया जाता है। इस धारा को कौन लगा सकता है तथा क्यू धारा 144 की आलोचना की जाती है। इसके अतिरिक्त हमने न्यायालय की धारा 144 पर क्या राय रही है वह भी जाना । साथ ही धारा 144 और कर्फ़्यू में क्या अंतर है यह भी समझा।

अतः इस पूरे लेख में धारा 144 से जुड़े सभी जरूरी और आवश्यक बिन्दु उल्लेखित किए गए है। धारा 144 को समझने के लिए यह लेख आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। हम आशा करते है की यह लेख आपको पसंद आया होगा । यदि धारा 144 से जुड़ा कोई भी सवाल आपके मन में है तो आप कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। हम पूरा प्रयास करेंगे की हम उसका उत्तर आप तक पहुंचा सकें। इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए बहुत आभार और धन्यवाद। 

Writer Name:- Kriti Varshney

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