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सिविल सेवा की तैयारी और मेरे सुझाव

आप लोगों में से बहुत लोगों के मन मे ये जिज्ञासा रहती है कि सिविल सर्विसेज की तैयारी की शुरूआत कहाँ से की जाएँ? मैं ऐसे लोगों से अक्सर यही बात कहता हूँ कि आप सबसे पहले यूपीएससी का सिलेबस देखिए। फिर इस सिलेबस को कई बार अच्छे से पढ़िए। जब सिलेबस की एक-एक बात आपके जेहन में बैठ जाएं तब इनसे संबंधित पाठ्य सामग्रियों को जुटाना शुरू कीजिए। इसके साथ ही पिछले वर्ष में पूछे गए प्रश्नों का एक सेट खरीद लीजिये। फिर किसी एक विषय के साथ शुरूआत कीजिये।

इस विषय को सिलेबस के मुताबिक विभिन्न टॉपिक्स में तोड़ लीजिये। टॉपिक के अनुसार पढ़ने से आपको न तो ये तैयारी बोझिल लगेगी और न ही आप इसे बीच मे छोड़ने का विचार करेंगे। एक बार टॉपिक को अच्छे से पढ़ लेने के बाद इससे संबंधित पिछले वर्षों के दौरान प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों को हल करना शुरू कर दीजिए। इतना करने के बाद आप पाएंगे कि अमुक टॉपिक न सिर्फ आपको रोचक लग रहा है बल्कि अब आपमें विषय की मांग के मुताबिक वैल्यू एडिशन करने का साहस भी आ जायेगा।

इन सभी कामों को करने के दौरान भी यदि आपको टॉपिक समझने में दिक्कत आ रही है तो फिर आप किसी कोच या कोचिंग का सहारा ले सकते है। एक यूपीएससी मेंटर के तौर पर मैं पहले अभ्यर्थियों को स्वयं से ईमानदारी से तैयारी करने की सलाह ही देता हूँ। लेकिन कई बार खुद से तैयारी करना आसान नहीं होता है। ऐसे में आपको अपने लिए उचित मार्गदर्शक या कोचिंग का चुनाव करना चाहिए।

आप किसी कोचिंग का चुनाव करते समय विशेष रूप से 3 बातों का ध्यान रखिये- फैकल्टी, विषयवस्तु और विश्वसनीयता। इसके लिए आप अपने स्तर पर ही कोचिंग के संबंध में जानकारी को जुटाइये। इसके अलावा आप अपने जानने वाले उन लोगों से भी सलाह-मशविरा कर सकते है जिन्होंने पूर्व में कोचिंग की तैयारी की है। अक्सर अभ्यर्थी जल्दबाजी में कोचिंग के लोक-लुभावने विज्ञापनों को देखकर कोचिंग का चुनाव कर लेते है। फिर जब अमुक कोचिंग में यूपीएससी के मांग के मुताबिक सिलेबस को न पढ़ाया जाता है तो फिर अपने निर्णय पर पछतावा भी करते है।आपको ऐसी स्थितियों से बचने के लिए उन्हीं उपायों को अपनाना होगा जिन्हें मैंने ऊपर के पैराग्राफ में बताया है।

अभ्यर्थी अक्सर कोचिंग के विज्ञापन में दिए जाने वाले चयन को अंतिम सत्य मान लेता है। लेकिन जन्नत की हकीकत कुछ और होती है। ऐसे में आप को जन्नत की सच्चाई जानने के लिए स्वयं ही यहाँ आना होगा और पुराने अभ्यर्थियों से उनके अनुभव को जानकर ही उचित निर्णय लेना होगा।

मैंने जब सिविल सर्विसेज की मेंटरिंग शुरू की तो मेरे दिमाग मे सिर्फ यही लक्ष्य था कि मैं उन लोगों को इस तैयारी के लिए तैयार कर सकूँ जो आभावग्रस्त है। मेरी कोशिश थी कि ग्रामीण अंचल के ज्यादा से ज्यादा बच्चे चयनित हो ताकि यह सेवा और अधिक समावेशी हो। चूँकि औपनिवेशिक काल मे सिविल सेवा को लौह-इस्पात के ढांचे से युक्त सेवा कहा जाता था। स्वतंत्रता के बाद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रहरियों की यही कोशिश थी कि सिविल सर्विसेज का रूपांतरण लोकशाही से लोकसेवा के रूप में हो सकें। इसलिए सिलेबस से लेकर परीक्षा की पद्धति में व्यापक बदलाव किए गए।

भारत सरकार के इसी ध्येय के अनुरूप मैंने भी यूपीएससी की मेंटरिंग को महज एक पेशे के रूप में न लेकर इसे जुनून बनाया। इसी जुनून का परिणाम था कि समाज के वंचित वर्ग से भी लोग इस सेवा में आने लगे। दूसरों के घरों में गृह कार्य करके जीवनयापन चलाने वाली एक माँ का बेटा हरीश कुमार सिविल सर्विसेज का सपना देखता है। वो मेरे पास आकर अपनी समस्या बताता है। मैं उससे कहता हूँ कि आप सिर्फ अपनी तैयारी पर फोकस कीजिये, मुझसे जो भी सहायता बन पड़ेगी, मैं करूँगा। लेकिन खुद्दार हरीश कहता है कि सर मुझसे जितना बन पड़ेगा, मैं उतनी फीस दूँगा। यह सुनकर मुझे बेहद खुशी होती है। और फिर वो हरीश यूपीएससी का अटेम्प्ट देता है और अपने पहले ही अटेम्प्ट में वो प्रतिष्ठित आईपीएस पद के लिए चयनित हो जाता है।

मैंने अपने लेख की शुरूआत में जिस रणनीति का जिक्र किया था। अब मैं आपको उस रणनीति पर अमल करके सफल होने वाली एक अभ्यर्थी के बारे में भी बताऊंगा। एक लड़की साक्षी गर्ग अपने ग्रेजुएशन के दिनों में ही तैयारी करने के लिए दिल्ली आ जाती है। वो निर्माण आईएएस में दाखिला लेती है। पूरे दो साल का कोर्स करती है। इस दौरान वो कोचिंग के द्वारा प्रदान किये जाने वाले एक-एक प्रोग्राम का हिस्सा बनती है। इनमें नियमित रूप से प्रीलिम्स की टेस्ट सीरीज देना, मेंस के लिए आंसर राइटिंग करना। जब वो खुद को इस एग्जाम के लिए एकदम तैयार हुआ पाती है तो फिर यूपीएससी का प्रीलिम्स देती है। लेकिन दुर्भाग्यवश उसका प्रीलिम्स महज 0.60 अंक से रह जाता है।

इसके बाद भी वो हार न मानती है। वो उसी तरह से मुख्य परीक्षा के लिए मॉक टेस्ट सीरीज देती है जैसे कि उसका वास्तव में चयन हुआ हो। इसके बाद वो अपने नोट्स को करेंट अफेयर्स के अनुसार अद्यतित भी करती है। अपनी विषयवस्तु में और धार लाने के लिए उनमें वैल्यू एडिशन भी करती है। अगले साल वो फिर से इस परीक्षा में बैठती है। इस बार उसका प्रीलिम्स हो जाता है। मेंस की आंसर राइटिंग में गुणवत्ता लाने के लिए वो अलग से भी मुझसे मार्गदर्शन लेती है। मेंस का रिजल्ट आता है और साक्षात्कार के लिए उसका चयन हो जाता है। इसके बाद वो निर्माण आईएएस के यूपीएससी इंटरव्यू के लिए शुरू किये गए क्वालिटी इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम से भी जुड़ती है। अंततः उसका चयन हो जाता है और महज 22 वर्ष की उम्र में ही उसे भारतीय राजस्व सेवा के सहायक उपायुक्त के पद पर कार्य करने का अवसर मिल जाता है।

अंत में आप सभी अभ्यर्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। आप सभी इस परीक्षा को जुनून के साथ दीजिये, चयनित होइए और देश को विकास की राह पर आगे ले जाइए।

कमल देव सिंह
(डायरेक्टर-निर्माण आईएएस)

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